"आधे अधूरे "मोहन राकेश द्वारा रचित एक नाटक है जो समकालीन ज़िंदगी को सार्थकता के साथ दर्शाता है । "आधे अधूरे" हमारे समाज ,परिवार , व्यक्ति और उनके पारस्परिक संबंधों में आए और लगातार आ रहे बदलावों के गम्भीर समाजशास्त्रीय तथा मनोवैज्ञानिक अध्ययन को दर्शाता है । इसके पात्र ,स्थितियां , उनकी समस्याएं और मनःस्थितियां , जितने विशेष हैं उतने ही सामान्य भी हैं । ये एक स्तर पर स्त्री पुरुष के बीच के लगाव और तनाव का दस्तावेज़ है, वहीं दूसरे स्तर पर ये नाटक मानवीय संतोष के अधूरेपन का रेखांकन भी है । ये नाटक एक पारिवारिक विघटन को दर्शाता है जिसका हर सदस्य एक दूसरे से कटा हुआ है । घर की हवा में वे एक दूसरे के लिए ज़हरीले हो रहे हैं । सावित्री की कमाई पर पलता हुआ महेंद्रनाथ दयनीय है , लड़का पत्रिकाओं से तस्वीरें काटता हुआ मौक़े के इंतज़ार में हैं जब वो यहाँ से निकल सकेगा । बड़ी लड़की इस सवाल की तलाश में है कि इस घर में ऐसा क्या है जो यहाँ से चले जाने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोड़ता ।महेंद्रनाथ ,सिंघानिया ,जगमोहन और जुनेजा - ये अलग-अलग गुणों के चार पुरुष है। चुनाव के एक क्षण में सावित्री ने महेंद्रनाथ के साथ गाँठ बाँध ली और आगे चलकर अपने को कभी भरा-पूरा महसूस नहीं किया । जो लोग ज़िंदगी से बहुत कुछ चाहते हैं उनकी तृप्ति अधूरी ही रहती है। ये नाटक व्यक्तियों और परिस्थितियों की भिन्नता के बावजूद भी मानवीय अनुभव की समानता का दिग्दर्शन है।